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देश का भविष्य भारतीय भाषाएं बोलने वाले लोगों के हाथ - अमित शाह

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14-15 सितंबर 2022 को हिंदी दिवस और द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का संयुक्त आयोजन सूरत, गुजरात में हुआ। इस अवसर पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री माननीय श्री अमित शाह जी के साथ गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई पटेल, राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश, गृह राज्य मंत्री श्री अजय कुमार मिश्रा, गृह राज्य मंत्री श्री निशिथ प्रामाणिक, गुजरात सरकार के गृह मंत्री श्री हर्ष रमेश सांघवी, रेल मंत्री दर्शना ज़रदोस और राजभाषा विभाग की सचिव सुश्री अंशुली आर्या मंच पर उपस्थित थे। आठ हजार से अधिक हिन्दी अधिकारियों, कर्मचारियों व हिंदी प्रेमियों की उपस्थिति में माननीय गृह मंत्री जी ने हिंदी से हिंदी शब्दकोश हिंदी शब्द सिंधु, कंठस्थ 2.0 तथा अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन की स्मारिका का लोकार्पण किया । इस अवसर पर इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा रची कविताओं के संग्रह का लोकार्पण भी किया गया। इस अवसर पर हिंदी प्रेमियों को सम्बोधित करते हुए माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री जी ने कहा कि हम सबके लिए यह दिन सिर्फ संविधान सभा के निर्णय को याद करने का नहीं है। मोदी जी ने कहा है 75 से 100 वर्ष तक अमृत काल है यह संकल्प लेने का और संकल्प से सिद्धि करने का समय है कि लघुताग्रन्थि से मुक्त होकर हमारी स्वभाषा से देश का विकास करेगा और देश को सर्वोच्च स्थान पर ले जाएगा। समय है जब तक हम यह संकल्प नहीं लेते कि हमारे देश का शासन, प्रशासन हमारी भाषाओं में होगा, राजभाषा में होगा तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते। राजभाषा को आगे बढ़ाने का मौका ही अब आया है। सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे राजभाषा सम्मेलन को देखकर मन को बड़ा आराम मिला है। राजभाषा के इस सम्मेलन को सूरत में आयोजित करने के दो कारण हैं। सूरत वीर नर्मद की धरती है जिन्होंने सबसे पहले मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने गरवी गुजरात का स्वप्न दिया था और अंग्रेजों के खिलाफ कहा था कि अपना प्रशासन हिंदी में होना चाहिए। दूसरा कारण यह कि सूरत उत्साह की भूमि है। मनोरथ सिद्ध करने वालों की भूमि है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है। यह बहुत बड़ी बात है। हिंदी हमारे मन की भाषा है, हिंदी हमारे राष्ट्रप्रेम की भाषा है हमें इसको आगे बढ़ाना है।



मोदीजी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सबसे अधिक भार प्राथमिक शिक्षा और आगे की शिक्षा को भी मातृभाषा में दिए जाने पर जोर दिया है। मुझे भरोसा है जब यह देश आज़ादी की शताब्दी मना रहा होगा तब 2020 में बोया गया। यह बीज वटवृक्ष बन चुका होगा। आज का दिन उनके सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। तिलक महाराज के स्वराज की परिकल्पना में सिर्फ शासन नहीं था, बल्कि देश का शासन देश के लोग अपनी भाषा में करें। मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ किभाषा क्षमता की परिचायक नहीं है। वह स्वभाषा को स्वीकारें, राजभाषा को स्वीकारें। मन की लघुताग्रन्थि को दूर करें। जब तक युवावर्ग अपनी भाषा में मौलिक चिंतन और अभिव्यक्ति नहीं करेगा वह कभी भी अपनी क्षमता को समाज के सामने नहीं रख पाएंगे। यह पूरी श्रृंखला को पंगु बनाने का काम पहले वाली सरकारों ने किया है। मैं अभिभावकों से भी एक बात कहना चाहता हूँ , कम से कम घर मे बातचीत की भाषा मातृभाषा रखियेगा। बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए उन्हें स्वभाषा अवश्य सिखाएं। आज यहां हिंदी शब्दसिंधु शब्दकोश का लोकार्पण किया गया। इसमें अन्य भाषाओं के शब्दों को आमेलित किया गया है। अनेक भाषाओं के शब्दों को हिंदी में स्वीकारना पड़ेगा। देशभर के हिंदी विद्वानों से करबद्ध निवेदन है बड़ा मन रखकर हिंदी के भले के लिए इसे स्वीकार करिएगा।जब तक इसे आपका आशीर्वाद और स्वीकृति नहीं मिलेगी यह आगे नहीं बढ़ पायेगा। जब तक हम हिंदी को लचीला नहीं बनाएंगे हम हिंदी को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। स्थानीय भाषाओं के विद्वानों से भी निवेदन है कि वह अन्य भाषाओं के शब्दों को अपनाएं। कुछ लोग अपप्रचार करते हैं कि हिंदी और अन्य भाषाओं में प्रतिद्वंदिता है। यह गलत है।क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी में कोई अंतर्द्वंद नहीं है। हिंदी क्षेत्रीय भाषाओं की सखी है सहेली है उनकी पूरक है। आज़ादी से पहले अंग्रेजों को हमारी कितनी भारतीय भाषाओं की कविताओं और साहित्य को प्रतिबंधित करना पड़ा ताकि वह लोगों तक न पहुंच सकें। यह मातृभाषा की शक्ति को दर्शाता है। यदि मेरी पढ़ाई लिखाई गुजराती मातृभाषा में न हुई होती तो मुझे हिंदी सीखने में कठिनाई होती। और यदि मैं हिंदी में न बोल पाता तो मेरी बात देशभर के लोगों तक न पहुंचा पाता। यह स्पष्ट है कि अब देश का भविष्य भारतीय भाषाएं बोलने वाले लोगों के हाथ मे होगा। हिंदी समावेशी भाषा है।

 

लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस, लाला लाजपत राय जैसे अन्य भाषा भाषी नेताओं ने राजभाषा के महत्व पर बहुत जोर दिया। सभी ने मातृभाषा के महत्व को इंगित किया, उसका उद्घोष किया और उसे प्रसारित किया। 

स्वामी दयानंद सरस्वती ने बहुत स्पष्टतया कहा था कि यदि मैं लोकभोग्य बनाना चाहता हूँ तो यह सिर्फ और सिर्फ हिंदी में सम्भव है। पांचवी कक्षा तक सभी शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। उच्चतर शिक्षा सामग्री को हिंदी व मातृभाषाओं में कराने के लिए कार्य चल रहा है। न्यायालय भी अपनी भाषा मे कर्त करें हम इस दिशा में भी कार्य कर रहे हैं। देश की शतप्रतिशत क्षमता का उपयोग तभी होगा जब मातृभाषाओं में काम करेंगे और तभी देश आगे बढ़ेगा। मित्रों भारत का रथ भाषाओं का रथ है। हिंदी को साथ रख हमें स्वभाषाओं को भी सशक्त करना पड़ेगा। मैं सभी को विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हिंदी को समृद्ध करने का पुअर प्रयास कर रहा हूँ। आप संकोच के बिना मातृभाषा और स्वभाषा को प्रयोग कीजिये।


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