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लापरवाही या भ्रष्टाचार: स्काडा अपनाते तो नहीं झेलनी पड़ती पानी की किल्लत

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राजेश दास/ फरीदाबाद: हर साल की तरह इस बार भी गर्मी का मौसम शुरू होते ही शहर में पानी के लिए हा-हाकार मचना शुरू हो गया है। हर बार गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत शुरू होने पर नगर निगम द्वारा दिखावे के लिए स्लम बस्तियों में पानी के टैंकर भेजकर समस्या का समाधान करने का दावा किया जाता है। जबकि पानी की समस्या से शहर की रिहायशी कॉलोनियां और यहां तक कि पॉश सेक्टर भी अछूते नहीं हैं। लेकिन नगर निगम द्वारा पानी की समस्या के लिए मूलरूप से जिम्मेदार कारणों की तरफ कभी ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की जाती। शहर भर में चार से छह मंजिला वैध अथवा अवैध इमारतों के निर्माण के कारण आबादी पहले के मुकाबले काफी बढ़ चुकी है। जबकि निगम के पास पेयजल आपूर्ति के लिए सीमित संसाधन हैं। वहीं रैनीवेल के कुओं से निगम के बूस्टर तक पहुंचने और घरों में सप्लाई किये जाने के दौरान काफी मात्रा में पानी व्यर्थ भी हो जाता है। वहीं शहर में सर्विस सेंटर और आरओ प्लांट संचालकों द्वारा भारी मात्रा में पानी का दुरूपयोग भी किया जाता है। पानी की कई समस्याओं का समाधान स्काडा से हो सकता है। लेकिन एफएमडीए ने स्काडा अपनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

रोज लाखों लीटर पानी का दुरूपयोग

पानी की भारी किल्लत के बावजूद शहर में पानी का रोज जमकर दुरूपयोग हो रहा है। पानी का दुरूपयोग करने में नगर निगम भी किसी से पीछे नहीं हैं। नगर निगम ने ज्यादातर पार्को के रख रखाव की जिम्मेदारी संबंधित आरडब्ल्युए को दी हुई है। निगम के पार्को में भूजल अथवा नगर निगम की सप्लाई के पानी से सिंचाई की जाती है। जबकि नियमों के मुताबिक पार्को की सिंचाई पेयजल की जगह एसटीपी के पानी से करनी होती है। पार्को में सिंचाई के लिए लगे ज्यादातर नलों की टोंटी गायब है। जिसके कारण पानी घंटों फिजुल में बहता रहता है। इसी तरह शहर में सैंकड़ों की संख्या में लोग जगह जगह बिल्डिंग मैटेरियल सप्लाई का बिजनेस चला रहे हैं। इन दुकानों में मैटेरियल पर हजारों लीटर पेयजल से पानी का छिडक़ाव किया जाता है। इसी तरह शहर भर में जगह जगह सैंकड़ों की संख्या में वाहनों की धुलाई के लिए सर्विस सेंटर खुले हुए हैं। जहां हजारों लीटर पानी रोज नष्ट किया जाता है। लेकिन नगर निगम इन पर लगाम लगाने की जरूरत ही महसूस नहीं करता।

स्काडा अपनाने क्यों हो रही देरी

हर साल गर्मी का मौसम शुरू होते ही शहर भर में पानी की समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। लेकिन इसके बावजूद प्रशासन स्काडा प्रणाली को अपनाने में देरी कर रहा है। दो साल से स्काडा सिर्फ चर्चा तक सीमित है। स्काडा लागू करने से पानी की चोरी पर प्रतिबंध लग जाएगा। स्काडा के तहत नदी के पानी को शहर में बने बूस्टरों में लाया जाता है। जहां पानी को साफ करने के लिए बूस्टर पर ही आरओ सिस्टम लगे हुए होते हैं। पानी को पीने योग्य बनाने के बाद उसकी आपूर्ति लोगों के घरों में की जाती है। इस प्रणाली में पानी की चोरी अथवा व्यर्थ जाने की गुंजाइश नाम मात्र की भी नहीं है। इस प्रणाली को लागू करने के बाद मैनपावर का खर्च भी काफी बच जाता है। इस कंप्यूटराइज्ड आधुनिक प्रणाली का संचालन एक कमरे में बैठ कर सिर्फ दो लोगों द्वारा ही किया जाता है। उन्हें कंप्यूटर के माध्यम से पता चल जाता है कि किसी इलाके में कितना पानी दिया जा चुका है और कितने पानी की जरूरत है।

जिले में गिर रहा है भूजल स्तर

अरावली से छेड़छाड, भूजल रिचार्ज न होने और माफियाओं द्वारा किए जा रहे पानी के दोहन की वजह से जिला डार्क जोन में शामिल हो चुका है। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में शहर के लोग पानी के लिए तरस जाएंगे। आरएमसी सडक़ों के निर्माण और कई कारणों से बरसात का पानी जमीन में रिचार्ज नहीं हो पाता। जिसे ध्यान में रखते हुए नगर निगम जेएनएनयूआरएम परियोजना के तहत शहर में 190 रैन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए थे। इनमें से ज्यादातर सिस्टम गलत तरीके से बनाए गए हैं। जिससे पानी जमीन में नहीं जा पाता। जिसके कारण ज्यादा रैन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टमों की हालत खराब हो चुकी है। हर साल बरसातों से पहले इन्हें दुरूस्त करने के दावें तो किए जाते हैं पर बाद में ध्यान नहीं दिया जाता। गत वर्ष पूर्व नगर निगम आयुक्त यशपाल यादव ने शहर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए शहर के सभी रैन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टमों को दुरूस्त करने के आदेश दिए थे। लेकिन उनके तबादले के बाद आदेशों को अधिकारियों ने उठाकर ताक पर रख दिया था। जिससे रैन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम आज भी बदहाल हैं।

पानी का दुरूपयोग रोकना जरूरी

समाजसेवी अनीशपाल का कहना है कि पेयजल परियोजनाओं के तहत किये गए कार्यो की गुणवता की जांच की जानी चाहिए। क्योंकि आए दिन पाइप लाइनों के लीक होने और फटने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इसकी वजह से आए दिन लाखों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। निगम की तरफ से ट्यूबवैलों पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं, यदि इनकी भी जांच की जाए तो एक और बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।

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