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हेल्थ डिपार्टमेंट मरीजों की परेशानी छोड़ मना रहा है हीमोफीलिया दिवस

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कविता/ फरीदाबाद: हीमोफीलिया ग्रस्त मरीजों को इलाज के लिए पहले शहर से बाहर जाना पड़ता था। हीमोफीलियाग्रस्त मरीजों की इस परेशानी को देखते हुए 24 फरवरी 2014 को बादशाह खान सिविल अस्पताल में मौजूद ब्लड बैंक में एक हीमोफीलिया सेंटर की शुरूआत की थी। हीमोफीलिया क्लीनिक खुलने से प्रदेश भर के मरीजों की परेशानियां काफी हद तक कम हो गई थी। लेकिन पिछले पांच सालों से हीमोफीलिया के मरीजों को फिर से परेशानी झेलनी पड़ रही है। यहां पिछले काफी समय से हीमोफीलियाग्रस्त मरीजों को फैक्टर भी नहीं मिल पा रहे हैं। दिव्यांगजनों की क्षेणी में आने वाले हिमोफिलिया और थैलासीमिया ग्रस्त मरीजों को अस्थाई प्रमाण पत्र न मिलने के कारण पेंशन हासिल करने के लिए परेशानी हो रही है। जिला स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से मरीजों के प्रमाण पत्र भी नहीं बन पा रहे है। थैलासीमिया और हीमोफीलिया ग्रस्त मरीज प्रमाण पत्र जारी करवाने के लिए लगातार स्वास्थ्य विभाग के चक्कर काटते हैं, लेकिन उनके प्रमाण पत्र नहीं बन पाते। तीन वर्ष के लिए बने हीमोफीलिया मरीजों के अस्थाई सर्टिफिकेट 2018 में समाप्त हो गए थे। धक्के खाने के बाद कुछ ही मरीजों के प्रमाण पत्र बने है। 

यह है स्थिति

जिले में हीमोफीलिया के करीब 53 और थैलेसिमिया के करीब 200 रोगी हैं। स्वास्थ्य विभाग हीमोफीलिया और थैलेसीमिया के मरीजों के दिव्यांग सर्टिफिकेट मात्र तीन वर्ष के लिए बना रहा है। दिव्यांग प्रमाण पत्र स्वर्गीय राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलम जी की पहल के बाद बनने शुरू हुए थे। लेकिन इस लाइलाज बीमारी के लिए प्रमाण पत्र अस्थाई बनाए जा रहे हैं।

अस्थाई प्रमाण पत्र

थैलीसीमियाग्रस्त मरीजों की सेवा में जुटे रविन्द्र डुडेजा ने बताया कि थैलासीमिया और हीमोफीलिया ग्रस्त बच्चों का तीन साल का प्रमाण पत्र बनाया जाता है। थैलासीमिया व हीमोफीलिया एक ऐसी बीमारी है। जिसे किसी दवा या इंजेक्शन से ठीक नहीं किया जा सकता है। जब तक स्थाई नहीं लिखा जायेगा तब तक बच्चों को दिव्यांग प्रमाण पत्र से कोई फायदा ही नहीं मिल पा रहा है। उनको पेंशन नहीं मिल पा रही है और यह खासतौर पर फरीदाबाद में हो रहा है। जबकि दिल्ली, पलवल, रोहतक, झज्जर जैसे शहरों में थैलेसीमिया और हीमोफीलिया ग्रस्त बच्चों को पेंशन दी जा रही है। इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखा था। जिसमें थैलेसीमिया के कुछ बच्चों की पेंशन शुरू हो गई थी। लेकिन प्रमाण पत्र रिन्यू कराने का चक्कर अभी भी जारी है।



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