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अमितेश नलिन की यात्रा, आखिर कैसे बने इंजीनियर

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गुरुग्राम: एक बार मैं अपने अंकल के साथ कंसल्टेंसी एंड इंजीनियरिंग ऑर्गेनाइजेशन के प्रीमियर पर नोएडा के प्रोजेक्ट्स एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड (पीडीआईएल) विजिट करने गया था। यहां आते ही मेरे मन यह उत्कंठा हुई कि इंजीनियरिंग को मैं अपना प्रोफेशन बनाऊं। मैं बचपन से ही इंजीनियर बनाना चाहता था। 10 साल की उम्र में ही मैंने फैसला किया एक दिन मेरा सपना जरूर पूरा होगा। मेरे माता-पिता और मेरे परिवार ने काफी सहयोग किया और मेरे सपनों को पूरा करने के लिए काफी प्रोत्साहित किया। 

मैं हमेशा से इंट्रोवर्ट रहा हूं। मुझे लोगों के साथ बातचीत करने में काफी समय लग जाता था। एक ओर मेरी महत्त्वाकांक्षा थी, तो वहीं दूसरी ओर मेरा व्यक्तित्व। दोनों का मेल काफी कठिन था। अथक परिश्रम और मजबूत इरादों के बिना आईआईटी और एनआईटी जैसे संस्थानों में दाखिला भी नहीं लिया जा सकता था। इसे पाने के लिए मैं अपने आवरण से बाहर निकला और केवल अपने सपने को पाने पर फोकस किया। मैंने बनारस के एक बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन ले लिया। 

क्या इससे मुझे मदद मिली? मैं इसको और आसान कर देता हूँ - स्कूल में बिताए दिन मेरी लाइफ के सबसे अच्छे पल नहीं रहे। लेकिन, एक ऐसा समय आया जब मैंने कभी भी पीछ़े मुड़कर नहीं देखने का फैसला किया और उस दिन से, इंजीनियर बनने के लिए मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया। नया स्कूल, नया शहर, और नए चेहरों को स्वीकार और एडजस्ट कर पाना, वास्तव में मेरे लिए कठिन था। मेरे लिए तो किसी के भी साथ खुलकर बात तक करना आसान नहीं था। मैंने अपने शुरुआती दिनों में शायद ही कभी दोस्त बनाया हाे। इसके अलावा, शेड्यूल बेहद व्यस्त था और कक्षाएं जोरों पर चल रहीं थीं। हर एक त्योहार होली, दिवाली, दशहरा, सब कुछ पलक झपकते ही जैसे गायब हो गया। इन त्योहारों पर साथ में न परिवार थे और न ही दोस्त थे।

बोर्ड में अच्छे अंक लाने का बहुत दबाव था। मैं ऐसे परिवार से आता हूं, जहां हर कोई काफी शिक्षित रहा है। और मुझे उम्मीदें कुछ ऐसी भी नहीं थी जिसे में पूरा नहीं कर सकता था। बोर्ड के लिए खुद की तैयारी से ज्यादा चिंता थी कि दूसरे कैसे तैयारी कर रहे हैं। निश्चित रूप से मेरी पढ़ाई प्रभावित हुई और मैं 12 वीं कक्षा के प्री-बोर्ड एग्जाम में फेल हो गया। मेरा परिवार बेहद निराश हो गया। मेरा भी यही हाल था। यह तय ही नहीं कर पा रहा था कि वास्तव में इसके पीछे वजहें क्या थीं। लेकिन, अब मुझे पता है। परिदृश्य बदलता है, समाजिक दबाव बढने लगता है। हर किसी की उम्मीदों से परे जाने के लिए लंबा सफर मुझे तय करना था। यह मुझे मेरी महत्वाकांक्षा की तरफ ले जाता। मुझे अभी भी अपने शिक्षक के वे रुखे शब्द याद हैं, जब उन्होंने मेरा रिजल्ट देखकर कहा, "तुम एक फेलियर हो।' उस दौरान ऐसा महसूस हुआ कि हार्ड वर्क करने पर भी लाइफ में सफलता नहीं मिलती। वह मेरे लिए एक भारी झटका था। उसी क्षण से, मैंने वापसी का मन बनाया। क्या मैंने कर दिखाया? बिल्कुल, मैंने खुद को अनुशासित किया। पुश किया और खुद को याद दिलाता रहा कि मैं क्यों यहां पर हूं।जीवन में केवल एक चीज जिससे मुझे शांति और संतोष मिला, वह था कैंपस के बाहर वंचित छात्रों के लिए क्लास शुरू करना। यह मेरे जीवन का एक अहम टर्निंग प्वाइंट था। मैंने आत्म निरीक्षण कर खुद से पूछा कि क्या मैं अपने साथ न्याय कर रहा हूं? मेरे बेहतर कॅरियर के लिए मुझ़े हर तरह की सुविधाएं मिलीं। यहां ऐसे बच्चे हैं, जिनका गुजारा ही मुश्किल लगता है, मगर वे बेहद उत्साहित होकर मुझसे पढ़ने आते थे। वह स्कूल बहुत सी चीजों का अंत था और कई अच्छे दिनों के शुरुआत का कारण भी।

अगली परीक्षा में, मैंने भौतिकी और रसायन विज्ञान में 100% अंक प्राप्त किए और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उस समय मैंने जिस रास्ते का अनुसरण किया, वह एक 15 साल के बच्चे के लिए आसान नहीं था। इंजीनियरिंग के लिए मेरा जुनून और गहरा होता गया। मैंने अपने स्नातक कोर्स के साथ-साथ आईआईटी-आईएसएम, धनबाद से पोस्ट ग्रेजुएशन के दौरान भी वंचित छात्रों के लिए कक्षाएं जारी रखा।

2019 में मैं ऑर्किड्स करियर फाउंडेशन प्रोग्राम के लिए फैकल्टी के तौर पर ऑर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल के साथ जुड़ा। यहां मैं हर एक प्रवेश परीक्षाओं के लिए छात्रों को प्रशिक्षित करता हूं। इन सबसे ऊपर, मेरा मानना है कि मैं अपने ज्ञान की खोज में इनोसेंट माइंड्स को आकार और पंख दे रहा हूं। उनके साथ सीख रहा हूं। अपनी यात्रा से, केवल एक चीज जो मैं निष्कर्ष निकाल सकता हूं, वह है, “जीवन में जो मायने रखता है वह दृढ़ विश्वास और मजबूत इरादा है। यदि आपके पास ये दोनों हैं, तो आपकी सफलता की राह में कभी भी कोई बाधा नहीं आड़े आएगी।

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