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बीएमएल मुंजाल युनिवर्सिटी - स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज़ कन्वजेऱ्शन; ‘हिंदीः वाद-विवाद-संवाद’ के पहले संस्करण का आयोजन किया

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नई दिल्ली 30 अप्रैल 2024: हीरो ग्रुप की पहल बीएमएल मुंजाल युनिवर्सिटी ने एक प्रतिष्ठित फोरम- स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज़ कन्वजेऱ्शन का गठन किया, इस फोरम ने आज की दुनिया में जटिल मुद्दों एवं उभरती स्थितियों पर विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराया। इस अवसर पर बीएमएल मुंजाल युनिवर्सिटी ने दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के कमलादेवी कॉम्पलेक्स में ‘हिंदीः वाद-विवाद-संवाद’ विषय पर पहले चर्चा सत्र का आयोजन किया। जहां हिंदी भाषा, इसके विकास, प्रतियोगिता और बहुलता पर चर्चा हुई। फोरम का उद्घाटन बीएमएल मुंजाल युनिवर्सिटी की प्रेज़ीडेन्ट मिस स्वाति मुंजाल और बीएमयू के चांसलर सुनील कांत मुंजाल ने किया। 

‘हिंदीः वाद-विवाद-संवाद’ के इस सत्र में जाने-माने पैनलिस्ट और विषय विशेषज्ञ शामिल हुए। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, विभाजन एवं भाषा के प्रतिष्ठित इतिहासकार सलिल मिश्रा द्वारा संचालित सत्र में हिंदी कवि-आलोचक और संपादक-अनुवादक अशोक वाजपेयी, दिग्गज पत्रकार, टीवी व्यक्तित्व एवं लेखक मृणाल पांडे तथा हिंदी कवि, आलोचक एवं अनुवादक असद ज़ैदी मौजूद रहे। 

इस अवसर पर प्रोफेसर श्याम मेनन, वाईस चांसलर, बीएमयू ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘लॉ एवं लिबरल स्टडीज़ के साथ हमारा मानना है कि युनिवर्सिटी को दिल्ली शहर के इंटेलेक्चुअल क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत बनाना चाहिए। स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज़ कन्वजेऱ्शन इस प्रयोजन के लिए मंच उपलब्ध कराएगा। आज के दौर में टेलीविज़न पर वादविवाद और बहस के बीच बातचीत की कला खत्म हो रही है। हम सामने वाले की बात को गहराई से सुनने का हुनर भूल गए हैं, हम जल्दबाज़ी में बात को सुनते हैं और बिना किसी निश्चितता के हस्तक्षेप एवं ज़ोरदार दावे करने लगे हैं, लेकिन कुछ रचनात्मक होने पर ही उच्च संतुलन की उम्मीद रखते हैं।’ 

अरिंदम बैनर्जी, डीन, स्कल ऑफ लिबरल स्टडीज़, बीएमयू ने कहा, ‘स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज़ कन्वजेऱ्शन आज की दुुनिया में जटिल मुद्दों और उभरती परिस्थितियों पर बातचीत एवं विचार-विमर्श के लिए उत्कृष्ट मंच है। तेज़ी से बदलती इस दुनिया में ऐसे स्थानों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है, जहां हम विभिन्न सामाजिक एवं मानवीय मुद्दों की बारीकियों को धैर्यपूर्वक समझ सकें। यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं, कि किसी भी लोकतांत्रिक सभ्यता के कोर मूल्यों से संवाद एवं सम्मानजनक असहमति का निर्माण होता है।’

सलिल मिश्रा, इतिहास के प्रोफेसर, अम्बेडकर युनिवर्सिटी, दिल्ली ने अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘हिंदी की आज की दुनिया को समझने के लिए लिए उसके अतीत को समझना ज़रूरी है। हिंदी को एक ऐतिहासिक एवं समाज शास्त्रीय दृष्टिकोण के साथ देखना ज़रूरी है। हमारा पैनल साहित्य के स्तर पर पत्रकारिता और हमारे संस्थागत निर्माण के स्तर पर हिंदी से बहुत गहराई के साथ जुड़ा है। ’

अशोक वाजपेयी, हिंदी कवि एवं साहित्यिक समीक्षक ने कहा, ‘आज हिंदी के हालात क्या हैं? हिंदी में 46 बोलियां हैं। हिंदी की एक भूमिका यह है कि वो खुद अपनी बोलियों के बीच एक संपर्क भाषा है। अच्छी साफ़ हिंदी लिखने के लिए संस्कृति, उर्दु और अंग्रेज़ी भी जानना चाहिए। हिंदी सबसे अतिथेय भाषा है। बहुत अनुवाद होते हैं। हिंदी भाषी दूसरी भाषा सीखने में आलसी हैं। यह दुुर्भाग्य है की बात है। आजकल हिंदी सांप्रदायिकता के साथ जुड़ गई है। अच्छी बात यह है कि हिंदी के अधिकांश महत्वपूर्ण साहित्य इस सबकेे विरोध में हैं। वो एक नैतिक और राजनैतिक प्रतिपक्ष है।’ 

मृणाल पाण्डे दिग्गज पत्रकार, टीवी व्यक्तित्व एवं लेखक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, ‘जब जीवंत भाषा की शक्ति उदारवाद की कठोर शर्त के साथ मिलती है तो क्या होता है? हिंदी हमारे लोकतंत्र की तरह एक लगातार बनती इमारत है। वो नए किनारे काट रही है। हिंदी को अगर सार्वजनिक बोलचाल में लाना है तो श्रृंगार या भक्ति परख से वो नहीं होगा। राजनीति की भाषा क्या हो? एक ऐसी भाषा हो जो आम आदमी भी समझ सके और उपर वाले भी जान सकें। भाषा एक जीवंत इकाई है जो अवशोषित करती है, स्वीकार करती है। हिंदी आधुनिक धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं और इसकी समस्याओं, दोनों को प्रतिबिंबित करती है।’ 

असद जै़दी, कवि, सम्पादक एवं अनुवादक ने कहा, ‘हिंदी के मामले को अगर हिंदी के भीतर के परिसर से देखेंगे तो वो आधा जानना होगा। हिंदी का शस्त्रीकरण 19वीं सदी से शुरू हो गया था। हिंदी ने अपनी 46 बोलियों को भी हाशिए पर डाल दिया है। उनमें कुछ प्राचीन भाषाएं भी हैं। जैसे ब्रज, मैथिली। हिंदी और उर्दु को अलग करने में आप इतिहास के साथ छेड़खानी करते हैं। आप ब्रज को हिंदी साहित्य मानते हैं और उर्दु को निकालते हैं। यह एक बदमाशी है। हमें हिंदी के इस सिस्टम और इसकी विनाशकारी क्षमता से सतर्क एवं जागरुक रहना चाहिए।’

एक रोचक चर्चा के दौरान पैनल पर मौजूद दिग्गजों ने हिंदी भाषा से जुड़ी विभिन्न जटिलताओं, तथा भाषा की विविधताः 19वीं सदी के बाद से इसकी यात्रा जैसे विभिन्न गठबंधनों, प्रतिद्वंद्व, समावेशन एवं बहिष्कार; अन्य भाषाओं के साथ हिंदी के संबंध; और पिछले कुछ दशकों के दौरान हिंदी शिक्षा एवं हिंदी पत्रकारिता पर विचार-विमर्श किया।


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